ख्वाबों को
नए
पर मिल जाते हैं
मैं उड़ने लगता हूँ
नील गगन में
ऊपर - ऊपर और ऊपर
डगमगाती,
नाव को के पाल संभल जाते हैं
और मैं
डूबने से बच जाता हूँ
पीले निश्तेज चेहरे पे
सुबह के
सूरज की
रौशनी आ जाती है
बदन चंदन सा महक उठता है
और ,,,,,,
ये सब होता है मेरे साथ
तुमसे मिल के
और सिर्फ तुमसे मिल के
सुमी - सुन रही हो न ??
मुकेश इलाहाबादी ---
नए
पर मिल जाते हैं
मैं उड़ने लगता हूँ
नील गगन में
ऊपर - ऊपर और ऊपर
डगमगाती,
नाव को के पाल संभल जाते हैं
और मैं
डूबने से बच जाता हूँ
पीले निश्तेज चेहरे पे
सुबह के
सूरज की
रौशनी आ जाती है
बदन चंदन सा महक उठता है
और ,,,,,,
ये सब होता है मेरे साथ
तुमसे मिल के
और सिर्फ तुमसे मिल के
सुमी - सुन रही हो न ??
मुकेश इलाहाबादी ---
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