तुमसे मिल के गेंदा गुलाब हो जाएगी ज़िंदगी अपनी, गुलज़ार हो जाएगी है, ग़मज़दा दिल मेरा इक ज़माने से तू आये तो खुशिया हज़ार हो जाएगी मुकेश इलाहाबादी -------------------
चंदन सा महकता है कोई साँसों में बस गया है कोई जब जब तुमसे मिलता हूँ गुलाब सा खिलता है कोई कली क्यूँ मुस्कुराई शायद भौंरा गुनगुना गया है कोई तेरी पायल की रुनझुन है या संतूर बजा गया है कोई
पलकों को
मूँदते ही
सुनाई देती है
तुम्हारे नाम की
गूँज - अनाहत नाद सी
जिसे सुनते - सुनते
डूब जाता हूँ
किसी, अजानी
नीली रूहानी झील में
जिसमे उतर कर
ताज़ा दम हो जाता हूँ
एक बार फिर
दिन भर के थकाऊ और
धूल भरे सफर के लिए
तू ग़ज़ल मेरी गुनगुनाऊँ तुझको
आ इक बार गले लगाऊँ, तुझको
ले आया हूँ, चाँद -सितारे तोड़ के
आ अपने हाथों से सजाऊँ तुझको
मुकेश, अपना ग़म, अपनी खुशी
ग़र इज़ाज़त दे तो सुनाऊँ तुझको