एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Tuesday, 4 October 2016
वक़्त के घुमते हुए चाक पे
वक़्त के
घुमते हुए चाक पे
रख दिया
तुम्हारी यादों की
सोंधी मिट्टी गूंथ के
जिससे गढ़ा,
एक खूबसूरत चराग़
और अब रौशन हैं
मेरे, दिन और रात
मुकेश इलाहाबादी -------
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