कुछ इस तरह से दिल बहलाते रहे
आप को याद कर के मुस्कुराते रहे
यूँ तो पतझड़ ही रहा अपने हिस्से
हाँ तेरी यादों के मोगरा खिलाते रहे
भूल जाने की उनकी बुरी आदत है
ईश्क़ क्या है हमी, याद दिलाते रहे
ज़िंदगी की कोई बाज़ी वो हारे नहीं
लिहाज़ा हम ही दिल हार जाते रहे
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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