अक्सर,
जब कभी मैं
मशगूल होता हूँ
किसी ज़रूरी काम में,
उसी वक़्त,
तुम ,,
लाड़ में, पीछे से आकर
कंधो पे अपनी ठोड़ी रख कर
मुस्कुरा के पूछती हो,
"किस काम में इत्ता मशगूल हो ?'
सच -----
तब ऐसा लगता है
जैसे,
नाचती हुई धरती
आ गिरी हो
सूरज की गोद में
मेरी प्यारी सुमी ,,,,,,
मुकेश इलाहाबादी -----
जब कभी मैं
मशगूल होता हूँ
किसी ज़रूरी काम में,
उसी वक़्त,
तुम ,,
लाड़ में, पीछे से आकर
कंधो पे अपनी ठोड़ी रख कर
मुस्कुरा के पूछती हो,
"किस काम में इत्ता मशगूल हो ?'
सच -----
तब ऐसा लगता है
जैसे,
नाचती हुई धरती
आ गिरी हो
सूरज की गोद में
मेरी प्यारी सुमी ,,,,,,
मुकेश इलाहाबादी -----
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