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Friday, 17 March 2017

अधूरा ख़्वाब

अधूरा ख़्वाब


घुटनो को मोड़ के
एड़ियों पे
बैठी हो तुम

गोद में तकिया लिए

शैम्पू
की खुशबू से तर
बॉब्ड कट बाल
तुम्हारे कंधो को साधिकार
चूम रहे हैं,
(जिन्हें हथेलियों में ले
सूँघना चाहता हूँ - देर तक
आँखें बंद कर के )

तुम्हारे
चंदा से गोल चेहरे पे
मासूम सी शरारत लिए हँसी
तैर रही है
जिसे अपनी बाँहों में क़ैद करने के लिए
गुदगुदाता हूँ तुम्हे

मछलियों की मुस्कराहट
हंसी में तब्दील हो जाती है
तुम हंसती जाती हो
और
गुदगुदाने के लिए मना भी करती जाती हो
और
मुक्की मारती हुई लिपट जाती हो

और मैं -
मगन देखता हूँ
पूर्णिमा के चाँद को अपनी बाँहों में
खुश, तृप्त और पूर्ण

मुकेश इलाहाबादी --

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