सुबह होते ही सीने में खिल उठता है गुलमोहर की तरह
फिर दिन भर वही शख्स महकता है गुलमोहर की तरह
उसकी बातें उसकी हंसी उसकी शोखी उसकी मस्त अदा
झूमता है कोई शामो सहर मेरे आंगन गुलमोहर की तरह
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------------
फिर दिन भर वही शख्स महकता है गुलमोहर की तरह
उसकी बातें उसकी हंसी उसकी शोखी उसकी मस्त अदा
झूमता है कोई शामो सहर मेरे आंगन गुलमोहर की तरह
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------------
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