अपने,
अंदर इतनी आग
बचाये रखना चाहता हूँ
ताकि,
पकते रहें रिश्ते
सिझती रहे रोटी
मै,
अपने अंदर बस इतना
जल चाहता हूँ,
ताकि,
पनपते रहें रिश्ते
बनी रहे सम्बन्धो में स्निग्धता
इतना ही आकाश चाहता हूँ
ताकि, मेरे अंदर अपनों के साथ - साथ मेरे
आलोचक भी रह सके साथ - साथ
माटी भी, अपने अंदर इतनी ही चाहता हूँ
ताकि, खिल सके 'प्यार के फूल'
और महक सकूं मै
बस !
इतनी ही आग,पानी,हवा,माटी और आकाश चाहिए, मुझे
मुकेश इलाहाबादी -------------
अंदर इतनी आग
बचाये रखना चाहता हूँ
ताकि,
पकते रहें रिश्ते
सिझती रहे रोटी
मै,
अपने अंदर बस इतना
जल चाहता हूँ,
ताकि,
पनपते रहें रिश्ते
बनी रहे सम्बन्धो में स्निग्धता
इतना ही आकाश चाहता हूँ
ताकि, मेरे अंदर अपनों के साथ - साथ मेरे
आलोचक भी रह सके साथ - साथ
माटी भी, अपने अंदर इतनी ही चाहता हूँ
ताकि, खिल सके 'प्यार के फूल'
और महक सकूं मै
बस !
इतनी ही आग,पानी,हवा,माटी और आकाश चाहिए, मुझे
मुकेश इलाहाबादी -------------
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