Pages

Wednesday, 5 April 2017

स्याह रातों में उजाला हो जाता है

स्याह रातों में उजाला हो जाता है
तनहाई में जब कोई याद आता है

मैं चुप, बुलबुल चुप, हवा भी चुप
फिर कानो में कौन गुनगुनाता है

ये कौन? लहरों समंदर से बेखबर
रेत् पे नज़्म लिखता है मिटाता है

जाने किसको याद कर के रोता है
बच्चों सा सुबकते हुए सो जाता है

फक्त अल्फ़ाज़ों के मोती हैं, जिन्हें
मुकेश,अपनी ग़ज़लों में लुटाता है 

मुकेश इलाहाबादी ----------------

No comments:

Post a Comment