स्याह रातों में उजाला हो जाता है
तनहाई में जब कोई याद आता है
मैं चुप, बुलबुल चुप, हवा भी चुप
फिर कानो में कौन गुनगुनाता है
ये कौन? लहरों समंदर से बेखबर
रेत् पे नज़्म लिखता है मिटाता है
जाने किसको याद कर के रोता है
बच्चों सा सुबकते हुए सो जाता है
फक्त अल्फ़ाज़ों के मोती हैं, जिन्हें
मुकेश,अपनी ग़ज़लों में लुटाता है
मुकेश इलाहाबादी ----------------
तनहाई में जब कोई याद आता है
मैं चुप, बुलबुल चुप, हवा भी चुप
फिर कानो में कौन गुनगुनाता है
ये कौन? लहरों समंदर से बेखबर
रेत् पे नज़्म लिखता है मिटाता है
जाने किसको याद कर के रोता है
बच्चों सा सुबकते हुए सो जाता है
फक्त अल्फ़ाज़ों के मोती हैं, जिन्हें
मुकेश,अपनी ग़ज़लों में लुटाता है
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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