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Monday, 12 June 2017

नम दीवारों और,जंग लगा बक्से में

शीली
और नम दीवारों
जंग लगे बक्से में रखे
तुम्हारे,
अन्तर्देशी पोस्ट कार्ड में
भेजे गए पीले पड़ते पुराने
दीमक खाये
सीलन  से इक दूजे से चिपके ख़त
लुगदी बन जाने के लिए अभिशप्त हैं जिन्हे
सहेज न पाने की वज़ह से
नदी में प्रवाहित करने के
सिवा कोई रास्ता न होगा

उम्मीद है तुम मुझे माफ़ करोगी

मेरी सुमी ,

(हाला कि, इन खतों के एक एक हरुफ
मेरे दिलो दिमाग़ की डायरी में आज भी
महफूज़ हैं,  और रहेंगे  -
शायद अनंत काल तक
या फिर मेरे फ़ना होने तक )

मुकेश इलाहाबादी -----------------

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