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Wednesday, 16 August 2017

ज़मी से ऊपर आसमा से नीचा रहने दे


ज़मी से ऊपर आसमा से नीचा रहने दे
अपना क़द अपने साये से बड़ा रहने दे

सूरज का क्या? सांझ होते डूब जाएगा
साथ, अँधेरे के लिए, इक दिया रहने दे

कभी तो कोई तो पढ़ेगा तेरी ये दास्ताँ
लिख दिया है तो इसको लिखा रहने दे

वफ़ा नहीं करनी है तो मत कर मुकेश
कम से कम अपना दोस्त बना रहने दे

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

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