ज़मी से ऊपर आसमा से नीचा रहने दे
अपना क़द अपने साये से बड़ा रहने दे
सूरज का क्या? सांझ होते डूब जाएगा
साथ, अँधेरे के लिए, इक दिया रहने दे
कभी तो कोई तो पढ़ेगा तेरी ये दास्ताँ
लिख दिया है तो इसको लिखा रहने दे
वफ़ा नहीं करनी है तो मत कर मुकेश
कम से कम अपना दोस्त बना रहने दे
मुकेश इलाहाबादी ----------------------
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