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Sunday, 27 August 2017

तुम्हारी बातें जैसे

तुम्हारी
बातें जैसे
कोई बुलबुल चहचहा जाए
मुंडेर पे

तुम्हारी
हंसी, जैसे
किसी कोई बिखेर दे
ढेर सरे सफ़ेद मोती ज़मीन पे

तुम्हारी
आँखे, जैसे
मंदिर में टिमटिमाते दो दिए

तुम्हारी
साँसे, जैसे
इत्र की सीसी खुल के ढ्नंग  जाये
और महमहा जाये सारा आलम

सच ! ऐसी ही हो तुम

बस ! मेरी नहीं हो तुम

मुकेश इलाहाबादी --------------









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