Pages

Wednesday, 30 August 2017

तुम बिन


इस
बरसात में भी भीगा बहुत
तुम बिन

सांझ
मंदिर में घंटियाँ बज रही थी
जैसे तुम हंस रही हो
मुझे कुछ ऐसा लगा

तुम्हारा
कोई मेसैज नहीं आया
दिन बहुत उदास गुज़रा

की पैड से
उंगलिया बहुत देर
तक खेलती रहीं
फिर जाने क्या सोच के कॉल नहीं किया
मैसेज किया


जानता हूँ
तुम मेरे मैसेज का
जवाब तो न दोगी
पर पढ़ोगी ज़रूर

(बिना चेहरे पे कोइ भाव लाये
दिल में खुश होते हुए )

और रख दोगी मोबाइल चुपचाप

खैर ,,,

तुम अपना काम करो
मै तो ऐसी बक बक करता ही रहूंगा

बाय ,,,,,,

मुकेश इलाहाबादी -----------------

Posted by Mukesh Srivast

No comments:

Post a Comment