जलेंगे तपेंगे चलेंगे और सांझ होते ही डूब जायेंगे
हम सूरज हैं सुबह ताज़ादम होके फिर उग आएंगे
हवा पानी खाद सब कुछ किसी भी जगह ले लेंगे
हमारी जात इश्क़ है,किसी भी ज़मी पे उग जायेंगे
दुनिया का कोई भी ग़म हमारे आगे न टिकेगा,,
कभी चैती कभी फगुआ कभी मेघ मल्हार गायेंगे
तुम अपने यंहा जेहादी आतंकवादी पैदा करते रहो
हम अपनी ज़मीन पे आम महुआ तिलहन उगाएंगे
सिखाते रहिये आप वतन वालों को मज़हबी पाठ
हम भारत वासी सिर्फ योग और प्रेम ही सिखाएंगे
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------
--
No comments:
Post a Comment