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Sunday, 29 October 2017

जैसे जैसे सांझ कजराती है

जैसे जैसे सांझ कजराती है
तुम्हारी बहुत याद आती है

मै लौट गया होता कब का
तेरी मुहब्बत बुला लाती है

ज़िन्दगी मेरी मज़बूरी पर
हँसती है, खिलखिलाती है

तन्हाई की बुलबुल मुझको
रोज़ इक ग़ज़ल  सुनाती है

तुझसे कभी मिला नहीं पर
ख्वाबों  में  तू रोज़ आती है

मुकेश इलाहाबादी ---------

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