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Tuesday, 28 November 2017

हज़ारों इम्तहाँ ले चुका ज़माना

हज़ारों इम्तहाँ ले चुका ज़माना
हमें किसी भी क़ाबिल न माना

सैलाब बन के क़हर ढाऊंगा, ग़र
छलक गया मेरे सब्र का पैमाना


मुकेश इलाहाबादी ---------------

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