हज़ारों इम्तहाँ ले चुका ज़माना
हमें किसी भी क़ाबिल न माना
सैलाब बन के क़हर ढाऊंगा, ग़र
छलक गया मेरे सब्र का पैमाना
मुकेश इलाहाबादी ---------------
हमें किसी भी क़ाबिल न माना
सैलाब बन के क़हर ढाऊंगा, ग़र
छलक गया मेरे सब्र का पैमाना
मुकेश इलाहाबादी ---------------
No comments:
Post a Comment