एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Tuesday, 7 November 2017
तारे भी मस्ताने निकले
तारे भी मस्ताने निकले
तेरे ही दीवाने निकले
इक तू ही है सीधी - सादी
बाकी सब सयाने निकले
लिख के ग़ज़ल तेरे नाम
तुझको ही सुनाने निकले
सहरा जैसे अपने दिल में
गुले ईश्क़ खिलाने निकले
यूँ तो मै कोई रिन्द नहीं
पी के ग़म भुलाने निकले
मुकेश इलाहाबादी -----
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