एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Sunday, 31 December 2017
बादलों से रोशनी छन-छन के हमपे आने लगी हैं
बादलों से रोशनी छन-छन के हमपे आने लगी हैं
अब खामोशियाँ आप की हमसे बतियाने लगी हैं
मुकेश हम तो चुपचाप बैठ गए थे दरिया किनारे
अब तो हमसे लहरें रह - रह के बतियाने लगी हैं
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------
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