अँधेरी रातों में चाँद सितारा मत ढूंढ
मै समन्दर हूँ मेरा किनारा मत ढूंढ
मै गया वक़्त हूँ, लौट के न आऊँगा
मुझे बेवज़ह अब तू,दोबारा मत ढूंढ
अन्धो के शहर में चराग़ नहीं होते
फज़ूल में यंहा उजियारा मत ढूंढ़
बुझ चुके, हैं शोले तन -के - मन के
तू चिंगारी मत ढूंढ अंगारा मत ढूंढ
मुकेश, अपने पैरों पर चलना सीख
लाठी मत ढूंढ कोई सहारा मत ढूंढ़
मुकेश इलाहाबादी -----------------
मै समन्दर हूँ मेरा किनारा मत ढूंढ
मै गया वक़्त हूँ, लौट के न आऊँगा
मुझे बेवज़ह अब तू,दोबारा मत ढूंढ
अन्धो के शहर में चराग़ नहीं होते
फज़ूल में यंहा उजियारा मत ढूंढ़
बुझ चुके, हैं शोले तन -के - मन के
तू चिंगारी मत ढूंढ अंगारा मत ढूंढ
मुकेश, अपने पैरों पर चलना सीख
लाठी मत ढूंढ कोई सहारा मत ढूंढ़
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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