सीधा- सादा हूँ दुनियादारी नहीं आती
शब्दों की हमको बाज़ीगरी नहीं आती
यँहा तो रोज़ मुखौटे बदल लेते हैं,लोग
मै, बदल जाऊँ ये अदाकारी नहीं आती
लाख कोशिशों के बाद भी ठगा जाता हूँ
औरों जैसी क्यूँ समझदारी नहीं आती
जो जी में आता है, लिख देता हूँ मुकेश
अच्छा लिखूँ ऐसी कलमकारी नहीं आती
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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