बदन का हर हिस्सा सुलगता हुआ लगता है
कौन सा सूरज है,? जिस्म के अंदर जलता है
दूर तक कोई नहीं है फिर ये पदचाप किसकी
मेरे ज़ेहन की वीरान छत पे ये कौन चलता है
जब तलक कोई अपना न था कोई बात न थी
कोई अपना हो के बिछड़ जाये तो खलता है
जानता हूँ उसके दिल में मेरे लिए कुछ नहीं
फिर क्यूँ आँखों में उसी का सपना पलता है
ये और बात मुझे छोड़ कर चला गया मुकेश
अक्सर मुझे याद करता होगा ऐसा लगता है
मुकेश इलाहाबादी ------------------------------
No comments:
Post a Comment