सर्द मौसम में यही दिलासा है
मेरे बदन पे धूप का दुशाला है
अभी तो रोशनी थी अब नहीं
किसने काला पर्दा गिराया है
तुझसे मिल के रईस हो गया
तेरी हँसी चाँदी का सिक्का है
अभी कपडे बदलूंगा चल दूंगा
किसीने मिलने को बुलाया है
सभी भौंरें तितलियाँ उदास हैं
फिर कोई फूल रौंदा गया है
मुकेश इलाहाबादी ------------
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