एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Saturday, 9 June 2018
तुम ! शब् भर चाँद सा चकमती रहीं
तुम ! शब् भर चाँद सा चकमती रहीं
मै ! दिन भर सूरज सा दहकता रहा
हमारे तुम्हारे बीच कोई शाम नहीं थी
मुकेश इलाहाबादी --------------
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