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Monday, 13 August 2018

अब घर की अंगनाई में बूढ़े दरख़्त नहीं दिखते


अब घर की अंगनाई में बूढ़े  दरख़्त नहीं दिखते
कुंडी और साँकल वाले दरवाजे कंही नहीं मिलते

तब कच्ची दीवारें पीढ़ियों का बोझ उठा लेती थी
अब पक्के घरों में रिश्ते वर्ष भर भी नहीं टिकते 

माटी के चूल्हों पे रोटी ही नहीं रिश्ते भी पकते थे
अब गैस के चूल्हों पे उम्र भर रिश्ते नहीं सिझते  

वो दिन थे फटी धोती टूटी चप्पल में भी हंस लेते
अब तो लाखों रुपये कमा के भी चेहरे नहीं खिलते

सारे साधू - सन्यासी बड़े बड़े मठाधीश हो गए हैं 
तम्बूरा ले कर घूमने वाले सच्चे साधू नहीं दिखते 

मुकेश इलाहाबादी ------------------------------------

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