सतह के नीचे नीचे पानी बहता तो था
बर्फ का ही सही मगर मै दरिया तो था
यादों के कबूतर, अक्सर गुटरगूँ करते
इस दिले खंडहर में कोई बोलता तो था
क्या हुआ जो बूढा था, और बीमार था
रात देर से लौटूं तो बाप टोंकता तो था
तुझे भूल जाने से, कुछ और तो नहीं,हाँ
सुनाने के लिए मेरा पास किस्सा तो था
व्हाट्स एप ऍफ़ बी में ज़माने में मुकेश
सुमी के लिए, सही,ख़त लिखता तो था
मुकेश इलाहाबादी --------------------
बर्फ का ही सही मगर मै दरिया तो था
यादों के कबूतर, अक्सर गुटरगूँ करते
इस दिले खंडहर में कोई बोलता तो था
क्या हुआ जो बूढा था, और बीमार था
रात देर से लौटूं तो बाप टोंकता तो था
तुझे भूल जाने से, कुछ और तो नहीं,हाँ
सुनाने के लिए मेरा पास किस्सा तो था
व्हाट्स एप ऍफ़ बी में ज़माने में मुकेश
सुमी के लिए, सही,ख़त लिखता तो था
मुकेश इलाहाबादी --------------------
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