मासूम इतनी खुशी में लिपट जाती है
हँसती है तो चाँदनी सी बिखर जाती है
हँसती है तो चाँदनी सी बिखर जाती है
छू देता हूँ जो उसको शरारत से कभी
शरमा के छुई मुई सा सिमट जाती है
शरमा के छुई मुई सा सिमट जाती है
ज़माना कहता है वो बहुत जिद्दी है
मैं जो समझाता हूं समझ जाती है
मैं जो समझाता हूं समझ जाती है
मुकेश बेवज़ह लोग पत्थर समझते हैं
आँच पाते ही मोम सा पिघल जाती है
आँच पाते ही मोम सा पिघल जाती है
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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