दिल मेरा ये कहते हुए डरता है
तू मुझे बहुत अच्छा लगता है
कभी छलिया तो कभी अपना
तू जाने क्या क्या तो लगता है
तुझसे मिलने के बाद आँखों में
इक ख्वाब सुनहरा सा पलता है
जाने क्यूँ जब तू पास नहीं होती
ये दिल तुझको ही ढूँढा करता है
तुझको मुझसे प्यार नहीं तो तू
क्यूँ तेरे बारे में सोचा करता है
मुकेश इलाहाबादी ----------
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