मेरे पास पर नहीं उड़ सकता नहीं
चाँद है कि फलक से उतरता नहीं
एक मै मनाने का हुनर आता नहीं
एक वो रूठ जाए तो मानता नहीं
पहले उसी ने कहा आ सैर पे चलें
अब मै राजी हुआ तो चलता नहीं
खामोश हो जाये तो बोलता नहीं
बोलने पे आये तो चुप रहता नहीं
जो पूछता हूँ मुझे प्यार करते हो
बस मुस्कुराता है कुछ कहता नहीं
मुकेश इलाहाबादी ------
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