कई बार दरिया मेरे पास से गुज़र गया
और बात मै प्यासा का प्यासा रह गया
इक चराग़ जो जल रहा था मुसलसल
रुखसती से उसकी वो भी बुझ गया
तेरी यादों के कुछ लम्हे संभाल रखे थे
वो भी तो करवाएँ -ज़िंदगी में लुट गया
पहले ही कुछ दर्द कम न थे जो तू भी
दर्द का इक पहाड़ सीने पे रख गया
रात चाँद से कहा आओ कुछ बातें करें
चाँद नखरा दिखा बादलों में छुप गया
मुकेश इलाहाबादी,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
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