एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Thursday, 23 February 2012
आपका ये चरागे हुस्न,
कब का बुझ गया होता
जो हमने हथेलियों की,
कंदील न बनाया होता
मुकेश इलाहाबादी-----------
1 comment:
Kailash Sharma
24 February 2012 at 01:11
बहुत खूब!
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