घर की तलाश --------------
वह आदमी
सुबह से अपना घर तलाश रहा था
एक एक गली, सड़क और नुक्कड़ तक झांक आने के बाद भी
उसे अपना घर नही मिला
चलते चलते
शहर के आखिरी छोर से जा लगा,
जहां से गाँव की चौहददी शुरू होती थी
आदमी ने वहां भी जाकर घर तलाशना चाहा
पर गांव के भीतर भी एक नया नया शहर उग आया था
जिसकी गलियों, खलिहानों और हाटों में भी
उसे अपना घर नदारद मिला
अब वह आदमी गांव के सीवान से जा लगा
जबकि, सूरज भी थक कर
अपनी मॉद में छुपने को आतुर था
जबकि आदमी जंगल के मुहाने पे खडा था
घर की तलाश में
आदमी जंगल के अंदर ही अंदर खोता गया
जहां पहाडों की शिराओं से रिश रिश कर
एक कोटर में बनी झील थी
झील का पानी स्वच्छ और उज्जवल था
जिसकी निस्तरंगता सुनहरी मछलियों से ही टुटती और बनती थीं
झील में चांदी सा एक चॉद भी लहराता था
आदमी प्यासा था उसने अंजुरी भर ओक से पानी पीना चाहा
कि, चॉद उछल कर आकाश से जा लगा
और मछलियां तडप के फलक पे सितारे बन चिपक गयीं
और झील का पानी सरसरा कर
पहाडों की शिराओं में खो गया
सुबह वह आदमी जिसे घर की तलाश थी
सूखी झील के किनारे मरा पाया गया।
मुकेश इलाहाबादी
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