बैठे ठाले की तरंग -----------
जुगनू सा पीठ पे रोशनी लादे हुए
स्याह रातों में फिरता हूँ जगमाते हुए
ख़्वाबों की झील में तेरा अक्स
हर रोज़ हम देखा किये झिलमिलाते हुए
तफरीहन उनपे ज़रा सा तंज़ कास दिए
चल दिए महफ़िल से तमतमाते हुए
दिन ज़रूर मायूसी में गुज़रते रहे
मगर शाम बिताया किये गुनगुनाते हुए
स्याह रातों में फिरता हूँ जगमाते हुए
ख़्वाबों की झील में तेरा अक्स
हर रोज़ हम देखा किये झिलमिलाते हुए
तफरीहन उनपे ज़रा सा तंज़ कास दिए
चल दिए महफ़िल से तमतमाते हुए
दिन ज़रूर मायूसी में गुज़रते रहे
मगर शाम बिताया किये गुनगुनाते हुए
मुकेश इलाहाबादी -------------
No comments:
Post a Comment