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Tuesday, 3 April 2012

उमंग से भरे हुए आपके कूंचे तक तो आ जाते हैं,

बैठे ठाले की तरंग --------------------------------------
उमंग से भरे हुए आपके कूंचे तक तो आ जाते हैं,
फिर ना जाने क्यूँ कदम ठिठक ठिठक जाते हैं
सधे हुए एहसास, बहकती साँसों से बिखर जाते हैं
इज़हार ऐ तमन्ना को लरजते होंठ सिमट जाते हैं
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------

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