सुबह का आँचल मैला देखा
बैठे ठाले की तरंग --------------
सुबह का आँचल मैला देखा
दिन भी कितना धुंधला देखा
रातों को जब घर से निकले
चाँद को हमने तन्हा देखा
गुलशन में भी घूम के आये
हिज्र का मौसम फैला देखा
शजर का हर पत्ता जला हुआ
सूरज आग का गोला देखा
आखों मे हरदम बहता दरिया
दिल के अन्दर शोला देखा
मुकेश इलाहाबादी ------------
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