हवाओं में कसैला धुंआ सूंघता हूँ
हवाओं में कसैला धुंआ सूंघता हूँ
दोस्ती करके अब,वफ़ा ढूंढता हूँ
तेरे बेपनाह हुस्न की तारीफ़ करूँ
फिर तेरी आँखों में हया ढूंढता हूँ
चिड़ियों को चहके ज़माना हुआ
रात से ही सुबह का पता पूंछता हूँ
भूला हुआ बटरोही हैं ऐ मुकेश
हर एक से अपना पता पूंछता हूँ
मुकेश इलाहाबादी -----------------
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