Pages

Tuesday, 4 September 2012

अब हमसे न पूछ "ये रुसवाई क्यूँ है ?"

अब हमसे न पूछ "ये रुसवाई क्यूँ है ?"
शाम ऐ ग़म से पूछ "ये तन्हाई क्यूँ है ?"
अभी तो न हुआ मेरे मुहब्बत का तमाशा
फिर शहर में इतने तमाशाई क्यूँ हैं ?
हसीनो के चेहरे होते हैं इतने हसीन,
फिर उनके अन्दर इतनी बेवफाई क्यूँ है ?
हुस्न भी मिट जाएगा,मिट जाएगा जिस्म
फिर हसीनाएं इतनी इतराई - २ क्यूँ हैं ?
मुकेश इलाहाबादी -------------------------

No comments:

Post a Comment