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Tuesday, 4 September 2012

इसी सहरा मे डूबा है मेरी मुहब्बत का दरिया

इसी सहरा मे डूबा है मेरी मुहब्बत का दरिया
तेरी आखों मे ढूंढ लूंगा मै मुहब्बत का दरिया

अब तो खुद को बना लिया है पत्थर की मानिंद
जिस रोज भी टूटेगा बहेगा मुहब्बत का दरिया

आग का जलता रहता है, ये जिस्म सुबो शाम
बुझेगी ये आग जब बहेगा मुहब्बत का दरिया

दो रूहों के बीच खिल तो जायेंगे कुछ फूल
मुरझा जायेंगे गर न बहेगा मुहब्बत का दरिया

इंसानियत भी ज़िंदा है, अब तलक भी,शायद
तह मे बहता है कंही न कंही मुहब्बत का दरिया

मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------



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