एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Thursday, 13 September 2012
ज़माने ने जुबां को सिला न होता,
ज़माने ने जुबां को सिला न होता,
हमने भी आखों की जगह,
जुबां से काम लिया होता.
वो तो कुछ ज़ख्म थे,
मेरी उरियानियों में छुप ना पाए
वरना हमने तो,
मुहब्बत को छुपा लिया होता
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