अलाव बुझ चुका है अब शरारे नही हैं
फिजाओ मे भी अब वो नजारे नही हैं
क्यूं बेवजह राह तकते हो तुम उसकी
गैर हो चुके हैं वो अब तुम्हारे नही हैं
स्याह नागिन सी रात फैली है चुपके.2
फलक पे चांद नही है सितारे नही हैं
तुम्हे क्या पता है मुफलिसी के मायने
तुमने कठिन दौर अभी गुजारे नही है
हर सिम्त नजर आता आब ही आब है
बीच समंदर मे हो तुम किनारे नही हैं
अलग से ---------------
उदासी की चादर ओढ के बैठे हैं सब !!!
महफिल मे अब पहले से ठहाके नही हैं
कभी फागुन कभी सावन कभी चैती गाते थे
मुददत हुयी अब कोई गीत गुनगुनाते नही हैं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
फिजाओ मे भी अब वो नजारे नही हैं
क्यूं बेवजह राह तकते हो तुम उसकी
गैर हो चुके हैं वो अब तुम्हारे नही हैं
स्याह नागिन सी रात फैली है चुपके.2
फलक पे चांद नही है सितारे नही हैं
तुम्हे क्या पता है मुफलिसी के मायने
तुमने कठिन दौर अभी गुजारे नही है
हर सिम्त नजर आता आब ही आब है
बीच समंदर मे हो तुम किनारे नही हैं
अलग से ---------------
उदासी की चादर ओढ के बैठे हैं सब !!!
महफिल मे अब पहले से ठहाके नही हैं
कभी फागुन कभी सावन कभी चैती गाते थे
मुददत हुयी अब कोई गीत गुनगुनाते नही हैं
मुकेश इलाहाबादी ---------------------
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