एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Thursday, 4 October 2012
उदासियों के गहन गह्वर मे
उदासियों के
गहन गह्वर मे
अब भी छुपे हैं
तेरी यादों के बीज
जो अक्सर ---
रजनी गंध सा खिल कर
महमहाते हैं
दूर तक
देर तक
और फिर
मै मुस्कुरा उठता हूँ
एक ठहरी और ठिठकी,
मुस्कान के साथ
मुकेश इलाहाबादी ----------------
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