फैसला तुम्हारे हाथ मे है
ज़िन्दगी हमारी दांव पे है
तप रहा है सारा जहान कि
ठंडी हवा तुम्हारी छाँव मे है
शुकून ऐ पल कंही भी नही
चैन बस तुम्हारी ठांव मे है
शहर मे तो मिलती नही
जो बात तुम्हारे गाँव मे है
दौड़ के लिपट तो जाती तुम
पर हया की ज़ंजीर पाँव मे है
मुकेश इलाहाबादी -------------
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