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Saturday, 2 March 2013

बहुत देर तक मुस्कुराती रही धूप




 बहुत देर तक मुस्कुराती रही धूप
बेहया  सी खिलखिलाती  रही धुप

हम तो समझते रहे चाँदनी है  वह
जिस्मो जाँ को जलाती  रही  धूप

बैठे रहे छत पे तसुवर्रे जाना किये
हर बार हमें मुह चिढाती रही धूप

जबभी  तेरी यादों ने  ली अंगडाइयां
ख्वाब में हमारे कुनमुनाती रही धूप

कब तक समंदर बना रहता मुकेश
क़तरा क़तरा हमें सुखाती रही धूप

मुकेश इलाहाबादी -------------------






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