एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Friday, 1 March 2013
ये सुर्ख गुलाब
ये सुर्ख गुलाब
जो मेरे गुलशन में मुस्कुराया है
ये ज़ख्मे जिगर है
जिसे फूलों की तरह उगाया है
हमने तो हर रिश्ता उम्रभर निभाया है
नफरत के तीरों का जवाब भी
उल्फत से दिलाया है
मुकेश इलाहाबादी
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