एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Thursday, 14 March 2013
हवेली की शान देखो
हवेली की शान देखो
अन्दर से वीरान देखो
दरो दीवार पे नमी औ
कमरे सूनसान देखो
टूटते हुए मेहराबों मे
सदियों की दास्तान देखो
बजती थी शहनाई, अब
अभिशप्त मकान देखो
दफ़न कितने अरमान
चीखों के निशान देखो
मुकेश इलाहाबादी ----
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