एक बोर आदमी का रोजनामचा
Pages
(Move to ...)
Home
▼
Thursday, 4 July 2013
अब तो शाख पे हिलते हुए पत्ते भी रकीब लगते हैं
अब तो शाख पे हिलते हुए पत्ते भी रकीब लगते हैं
जो हवाओं से मिल के जो तेरी जुल्फ चूम जाते हैं
मुकेश इलाहाबादी .................................
No comments:
Post a Comment
‹
›
Home
View web version
No comments:
Post a Comment