एक बोर आदमी का रोजनामचा
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Thursday, 4 July 2013
अब तो शाख पे हिलते हुए पत्ते भी रकीब लगते हैं
अब तो शाख पे हिलते हुए पत्ते भी रकीब लगते हैं
जो हवाओं से मिल के जो तेरी जुल्फ चूम जाते हैं
मुकेश इलाहाबादी .................................
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