एक
फूलों की नाव है
और एक ही पतवार है
जिसके सहारे
घूम रही है
गोल - गोल
वहीं की वहीँ
दरियाए ज़िंदगानी में
यही गोल - गोल घेरे अब
धीरे धीरे - छोटे और छोटे होते जा रहे
इतने छोटे की
एक वृत में तब्दील हो चुके हैं
ये छोटा वृत्त
भंवर में तब्दील हो चुका है
जिसमे मेरी नाव
डूब रही है
तेज़ तेज़ घुमते हुए
आह ! मेरे पास
उम्मीद के नाम पे
दूर बहुत दूर क्षितिज पे
एक चमकता सितारा है
अगर वो अपनी
चांदी सी किरण मेरी तरफ भेज दे
तो शायद उसे पकड़
अपनी फूलों की नाव
को उसे चमकीले तारे की रस्सी से
बाँध किसी ठाँव लग जाऊं
पर जानता हूँ
ऐसा कुछ होगा नहीं
और एक दिन मै
तनहाई की नदी के
भंवर में - फूलों की नाव
और एक पतवार के साथ
और --
तब रह जायेगा नदी के ऊपर
एक स्याह आकाश
और एक छोटा सा चमकता सितारा
मुकेश इलाहाबादी -------------------