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Monday, 31 August 2020

फूलों की नाव है

 एक

फूलों की नाव है
और एक ही पतवार है
जिसके सहारे
घूम रही है
गोल - गोल
वहीं की वहीँ
दरियाए ज़िंदगानी में
यही गोल - गोल घेरे अब
धीरे धीरे - छोटे और छोटे होते जा रहे
इतने छोटे की
एक वृत में तब्दील हो चुके हैं
ये छोटा वृत्त
भंवर में तब्दील हो चुका है
जिसमे मेरी नाव
डूब रही है
तेज़ तेज़ घुमते हुए
आह ! मेरे पास
उम्मीद के नाम पे
दूर बहुत दूर क्षितिज पे
एक चमकता सितारा है
अगर वो अपनी
चांदी सी किरण मेरी तरफ भेज दे
तो शायद उसे पकड़
अपनी फूलों की नाव
को उसे चमकीले तारे की रस्सी से
बाँध किसी ठाँव लग जाऊं

पर जानता हूँ
ऐसा कुछ होगा नहीं
और एक दिन मै
तनहाई की नदी के
भंवर में - फूलों की नाव
और एक पतवार के साथ

और --
तब रह जायेगा नदी के ऊपर
एक स्याह आकाश
और एक छोटा सा चमकता सितारा

मुकेश इलाहाबादी -------------------

गाँठे

 एक

---

कुछ
गाँठे किसी भी
जतन से न तो खुलती हैं
न ही गलती हैं
बस टीसती रहती हैं
उम्र भर

दो
---

आज फिर खोली
स्मृतियों की पोटली में लगी
तुम्हारे नाम की गाँठ
और बिखर गए
तुम्हारी यादों के हीरे मोती

उन्हें ही दिन भर सहेजता रहा
समेटता रहा

मुकेश इलाहाबादी ----

ईश्क़ ही जन्नत है मुझे मर जाने दे

ईश्क़ ही जन्नत है मुझे मर जाने दे
तेरी आँखे इक नदी मुझे डूब जाने दे

सुना है ईश्क़ एक आग का दरिया है
अगर ये आग ही है तो जल जाने दे

लोग कहते हैं तेरी बातों में नशा है
इक बार मुझको भी बहक जाने दे

मुसाफिर हूँ शुबो होते ही चल दूँगा
शब् भर को सही मुझे ठहर जाने दे

रात भर बहुत रोई हैं ये आँखे मुकेश
इन्हे पल दो पल ही सही मुस्कुराने दे

मुकेश इलाहाबादी ------------

जिस्म से रूह तक महकती है

 जिस्म से रूह तक महकती है

इत्र की नदी फूलों की कश्ती है

हैं सोने के बाल चाँदी का बदन

परी है रात खाबों में उतरती है

अदा की चूनर हया का दुशाला

मोम से भी मुलायम लगती है

फ़रिश्ते भी देखने उतर आते हैं

बेनकाब घर से जब निकलती है

कुछ भी पूछो खामोश रहती है

कभी मुस्काती है कभी हंसती है

मुकेश इलाहाबादी ------------

अपने चेहरे पे हम शिकन नहीं रखते

 अपने चेहरे पे हम शिकन नहीं रखते 

दर्द कितना है कभी ज़िक्र नहीं करते 


मौका ढूंढ के लौटा दिया करते है हम  

जेब में किसी का एहसान नहीं रखते 


मिट जाए भले हस्ती हमारी मंज़ूर है

धौंस किसी की किसी हाल नहीं सहते 


घाटा तो बहोत है मगर कोइ ग़म नहीं 

ईश्क़ के सिवा कोइ व्यापार नहीं करते 


हमको भी मालूम है दौरे दस्तूर मगर 

फायदे के लिए सच को झूठ नहीं कहते 


मुकेश इलाहाबादी -------------------

Tuesday, 25 August 2020

मित्रता,

 हो

सकता है
कुछ लोगों के लिए

मित्रता,
तफरीहन एक माऊस क्लिक से
शुरू हो के
मैसेंजर से होते हुए
कुछ
फ़ोन कॉल्स / वीडियो कॉल्स
या बहुत से बहुत एक दो मुलाकात के बाद
फकत एक माउस क्लिक पे
ख़त्म हो जाने का सफर भर हो

पर - मेरे लिए
मित्रता करना
एक खूबसूरत कविता का सृजन करना है
जिसमे एक एक शब्दों का चुनाव
सजींदगी से करना होता है
बेहद खूबसूरत और
खुशबू से लबरेज भावों को पिरोना होता है
और ,,,, हो भी क्यूँ न
क्यूँ की कविता
दो चार दिन की नहीं
सदियों - सदियों का दस्तावेज होती हैं

मेरे लिए
मित्रता एक वचन
एक विश्वास होता
और पूजा होती है

लिहाजा,
मित्रता - एक माउस क्लिक पे शुरू
और एक माउस क्लीक पे खत्म होने वाली
चीज़ तो कतई नहीं है

मुकेश इलाहाबादी ------------------------

हँसी

 वो 

उधर से 

हँसी उछाल देती है 


मै,

इधर से एक बित्ता 

मुस्कान, लुढ़का देता हूँ 


फिर मै उसकी हँसी के 

छोटे - छोटे गोले बना उछाल देता हूँ 

जो सांझ की नीले - नीले आकाश में 

रात होते ही सितारे सा चमकने हैं 

मेरे आँगन में 


और वो मेरी मुस्कराहट को 

खोंस लेती है अपने बालों में 

हेयर बैंड की तरह 

और रात 

उसी मुस्कराहट के कुछ हिस्सों की 

तकिया बना खो जाती है 

मीठे सपनो में 


और मै देखता हूँ 

उसकी उजली - उजली हँसी के 

सितारों से भरे आकाश को 


मुकेश इलाहाबादी -------------



Sunday, 23 August 2020

उसकी मुहब्बत

 उसकी 

तरह उसकी मुहब्बत भी 

अल्हड़ और मासूम है 



पर इतना तय है 

उसकी खुशियों और नाराजगी की 

वज़हें अक्सर बहुत छोटी- छोटी होती है 


जैसे,,,


हो सकता है, वो आप के एक छोटे से 

कॉम्पलिमेंट से खुश हो के आप के गले लग जाए 

या हो सकता है 

एक ठोंगा भेलपूरी 

और दो पत्ते गोलगप्पे से खुश हो जाए 


या फिर हो सकता है 

आप किसी जरूरी काम में मशगूल हों 

और उसे अपनी कोइ गैर ज़रूरी बात बतानी हो 

(जो अक्सर गैर ज़रूरी ही होती है )

और वो आप की नाक या कान पकड़ के 

अपनी और मुँह कर सूना ही देती हो 

और आप को बहुत अच्छा कह के  

बात के अनुसार खुश या दुखी होना होता है 

वरना वो नाराज़ हो के 

आप के सीने पे मुक्की मारती हुई 

रोने भी लग सकती है 


(फिर आप को बहुत देर तक 

समझाना और मनाना पड़ सकता है )


या हो सकता है 

आप उससे मिलने जाओ और वो 

सिर्फ इस बात पे मुँह फुला ले 

कि आप उसके दिए हुए गिफ्ट वाला 

डीओ लगा के नहीं आये हो 

या  पसंद की शर्ट नहीं पहन रखी हो 


या फिर आप ने उसकी नई ड्रेस 

या हेयर इस्टाइल को नहीं गौर किया हो 


खैर,,,,

उसकी इस अल्हड बातों  के बावजूद 

उससे प्यार की खुशबू 

दुनिया के अच्छे से अच्छे 

और महंगे से महंगे डीओ से भी 

खुशबूदार है 



मुकेश इलाहाबादी ------------


Saturday, 22 August 2020

तेरे साथ से बेहतर कोई साथ नहीं

 तेरे साथ से बेहतर कोई साथ नहीं 

तुझसे खूबसूरत कोई ख्वाब नहीं 


चुपके - चुपके तेरी आँखे पढता हूँ 

तुझसे बढ़ -कर कोई किताब नहीं 


कितनी रातें जागे जागे बीती मेरी 

इसका मेरे पास कोई हिसाब नहीं 


इक बार जी भर आ बातें कर ले तू 

फिर  उम्र भर न मिल एतराज नहीं 


मुक्कू सच कहूँ तू मेरे लिए क्या है

इसका तुझे जरा भी एहसास नहीं 


मुकेश इलाहाबादी -------------------



 

Friday, 21 August 2020

इक तुम ही हो जिससे कह सुन लेते हैं

 इक तुम ही हो जिससे कह सुन लेते हैं 

वैसे तो अक्सरहां  हम  चुप ही रहते हैं 


तुम्हारी हरबात अफसाना आँखे नज़्म 

जिसे हम चुपके - चुपके पढ़ते रहते हैं 


दिन में यादों के पंछी सोये से रहते हैं 

साँझ होते ही फलक पे उड़ने लगते हैं 


ये मासूम हँसी दूध सा चेहरा तभी तो 

तुझको लोग परियों की रानी कहते हैं 


या तो मुझको सफर में तेरा साथ मिले 

या फिर सफर में तन्हा ही खुश रहते हैं 


मुकेश इलाहाबादी ---------------------




Wednesday, 19 August 2020

रिक्त स्थान

 

मेरे 

आस - पास ये जो "रिक्त स्थान" है 

ये रिक्त नहीं 


इस रिक्त स्थान में 

व्याप्त है 

तुम्हारे नाम की वायु 

जो महकती हुई 

मेरे नथुनो से आ के मुझमे 

भरती रहती है "प्राण वायु"


इसी रिक्त स्थान से 

आती है तुम्हारी यादों की 

सुनहरी किरणे जो 

जगमग जगमग करती हैं 

मेरे अंदर के अँधेरे को भगा के 


इसी 

रिक्त स्थान में खिलता है 

तुम्हारे ईश्क का गुलाब 

जो मुझे मुस्कुराने के लिए काफ़ी है  


लिहाज़ा,,,,,,


तुम, 

मेरे लिए "रिक्त स्थान" भर नहीं हो 

जिसे भर के 

"मै" पूर्ण होना चाहूँ 

"तुम " मेरे लिए "पूर्ण " ही हो 

जिसके बगैर मै 

"शून्य " हूँ 


मुकेश इलाहाबादी -------------

 

Monday, 17 August 2020

जिस तरफ मुँह था उस तरफ पीठ कर ली है

 जिस तरफ मुँह था उस तरफ पीठ कर ली है 

अपने चलने के रास्ते की दिशा बदल दी है 


जैसे ही मुझे लगा मै तो नक्कार खाने में हूँ 

अपने कान बंद कर लिए ज़ुबान सिल ली है 


तुमने अल्फ़ा ओमेगा तक पढ़ लिया होगा 

हमने ज़िंदगी भर ईश्क़ की किताब पढ़ी है 


कभी चाँद मेरे साथ ठिठोली किया करता 

आज कल घर में मै और हूँ मेरी तन्हाई है 


वो भी गुमशुम गुमशुम रहता है और मै भी 

वजह ज़रा सी बात पे हम दोनों की कट्टी है 


मुकेश इलाहाबादी --------------------------


किसी दिन उड़ते उड़ते फलक तक जाऊँगा

 किसी दिन उड़ते उड़ते फलक तक जाऊँगा 

वहां तुम्हारे नाम का सितारा जड़  आऊँगा 


तुम ये जो रोज़ मुझे चिढ़ा के छुप जाती हो 

किसीरोज़ मै भी चुटिया खींच भाग जाऊँगा 


मेरी आँखों में सिर्फ तेरे नाम का आइना है 

किसी रोज़ तुमको तेरी सूरत दिखलाऊँगा 


तुम्हारी आंखों में ये जो उदासी का सहरा है 

बादल सा बरसूँगा इसे हरा भरा कर जाऊँगा 


मुकेश इलाहाबादी --------------------------


Thursday, 13 August 2020

किसी की याद में डूबी आँखे


किसी की याद में डूबी आँखे 

हैं आँसुओं से डबडबाई आँखे 


वादा किया था लौट आएगा

ये उसी की राह तकती आँखे 


रात भर सोया नहीं है दर्द से 

देख तो उसकी उनींदी आँखें 


यूँ ही नहीं हो गयी हैं ये सुर्ख 

किसी के हिज़्र में हैं रोई आँखे 


आ प्यार की लोरी सुना दूँ तो 

शायद सो जाएँ ये थकी आँखें 


मुकेश इलाहाबादी ---------------

Monday, 10 August 2020

जब से हमारे रस्ते जुदा हो गए

 जब से हमारे रस्ते जुदा हो गए 

वो खुश और हम तनहा हो गए


अपने ही हाथो से तराशा जिन्हे 

वे ही पत्थर मेरे ही ख़ुदा हो गए 


जिनके लिए झील थे दरिया थे 

मुफलिसी में हम सहारा हो गए 


फकत इक झलक देखी खुदा की 

उसी पल से तो हम बावरा हो गए 


तू हाले दिल मेरा न पूछ मुकेश 

हम क्या थे और ये क्या हो गए 


मुकेश इलाहाबादी ---------------





 

Friday, 7 August 2020

जैसे तितली पँख सिकोड़ के बैठी है

 जैसे तितली पँख सिकोड़ के बैठी है

तेरे होंठो पे हँसी ऐसे छुप के बैठी है

मेरे काँधे पे जब तो ठुड्डी रखती है
जैसे चिड़िया उड़ के मुंडेर पे बैठी है

तू धानी चुनर ओढ़ जब गले मिले
ज्यूँ ज़मी फलक की गोद में बैठी है

मुकेश इलाहाबादी -----------------

आँख अंधी और कान बहरे हो चुके हैं

 आँख

अंधी और कान
बहरे हो चुके हैं
और ज़ुबान तालू से
चिपक चुकी है

(बोलने - देखने- सुनने वालों के )

अपनी
आँखें कान और ज़ुबान
गिरवी रख दी है

(कुछ चालाक लोगों ने )

अपनी अपनी
आँख - कान और जुबान
बचाये रखने के लिए
खुद को अँधेरे में छुपा रखा है

(कुछ डरे हुए लोगों ने )

मुकेश बाबू ! क्या बताओगे,
तुम इन तीनो में से किस कैटेगिरी में हो ????

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

कुछ अधूरी ख्वाहिशें ले कर

 कुछ अधूरी ख्वाहिशें ले कर 

जी रहा हूँ तेरी चाहतें ले कर 


थका हूँ फिर भी चल रहा हूँ 

फटे जूते  फटी जुराबें ले कर 


तुझसे कहने सुनने आया हूँ 

ज़िंदगी की शिकायतें ले कर 


सोचता हूँ मै भी मंदिर जाऊँ 

कुछ चाहतें व मुरादें ले कर 


छुप - छुपा के  कहाँ जा रहे हो 

ये दर्दों ग़म की कताबें ले कर 


मुकेश इलाहाबादी --------------