खड़ी बदनशीबी रास्ता रोक कर
नजूमी कह गया लकीरें देख कर
हम दर्द बना फिरता था अब तक
चला गया आज वह भी मुड़ कर
चाहता तो ज़वाब दे सकता था
मग़र चुप रह गया कुछ सोच कर
काली घनेरी रात के आलम में
बैठा हूँ देर से खामोशी ओढ़ कर
नहीं लौटेगा इस बेदर्द शहर में
मुकेश गया हमसे यह बोल कर
मुकेश इलाहाबादी ----------------
नजूमी कह गया लकीरें देख कर
हम दर्द बना फिरता था अब तक
चला गया आज वह भी मुड़ कर
चाहता तो ज़वाब दे सकता था
मग़र चुप रह गया कुछ सोच कर
काली घनेरी रात के आलम में
बैठा हूँ देर से खामोशी ओढ़ कर
नहीं लौटेगा इस बेदर्द शहर में
मुकेश गया हमसे यह बोल कर
मुकेश इलाहाबादी ----------------