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Saturday, 23 March 2013

बातें छोटी छोटी लिख


 बातें छोटी छोटी लिख
सारी बातें अपनी लिख

दिन तनहा तनहा बीता
रातें  रोती रोती  लिख

पलकें भीगी भीगी रहती
आखें   सूनी  सूनी  लिख

आग  देह  में जलती थी
तपती तपती गर्मी लिख

जाड़ा बीता आग तापते
तू सर्दी ठंडी ठंडी लिख

सावन  जाए रीता रीता
झूला खाली खाली लिख

धधक रही हूँ  विरहन मै
बिन रंगों की होली लिख

मुकेश इलाहाबादी------

Friday, 22 March 2013

अपने ग़म से गाफ़िल हैं

अपने  ग़म  से गाफ़िल हैं
शायद हम सब काहिल हैं

अपनों पे ही वार करें हम 
देखो कितने जाहिल हैं ??

खुद अपनी कश्ती डुबो रहे
फिर ढूंढें अपना साहिल हैं

जो होते इतने रोज़ घोटाले
इसमें सारे नेता शामिल हैं

किताबे मुहब्बत पढ़ा नहीं
कहते  आलिम फ़ाज़िल हैं

मुकेश इलाहाबादी --------


ले गए हो मुझसे मेरी ज़िन्दगी छीन के


ले गए हो मुझसे मेरी ज़िन्दगी छीन के
ले जाओ तुम मेरी अब यादें भी छीन के

छीना है तुमने मेरे होठो से मेरा जाम
ले जाओ  अब ये तिश्नगी भी छीन के

सब हंस रहे हैं मेरी उरियानियाँ देख के
अच्छा नहीं किया मेरी तीरगी छीन के

तूफाँ  के  जोर  ने बुझा  दिए सब चराग
हवा  खुश  हो  रही  है  रोशनी  छीन  के

साहिल  हूँ  मेरी  बाहों  मे  बह  रही  थी
ले  गया  समंदर  मेरी  नदी  छीन  के

मुकेश इलाहाबादी -----------------

Thursday, 21 March 2013

सिवाए तजुर्बे के कुछ हासिल न हुआ ज़माने मे

सिवाए तजुर्बे के कुछ हासिल न हुआ ज़माने मे
दिलो जाँ सब कुछ लुटा रह गए तनहा ज़माने में 
मुद्दतों दर ब दर की ख़ाक छानी है हमने
तब जा के  कुछ तज़ुर्बा हासिल हुआ ज़माने में 
खुदगर्ज़ है ज़माना कोइ कोई किसी का होता नहीं
कर के भरोसा हमने खाया  है धोखा ज़माने मे
मुकेश इलाहाबादी --------------------------------

अब कोई तिश्नगी बाकी नहीं


अब कोई तिश्नगी बाकी नहीं
ख्वाहिशे जिंदगी बाकी नहीं

महफ़िल से तुम जो चले गए
फिर कोई आरज़ू बाकी नही

लौ कंपकंपा के कह रही कि
चराग की रौशनी बाकी नहीं

बहुत गुदगुदाया मैंने उसे
उसके चेहरे पे हंसी बाकी नहीं

रात रोया है वह शख्श इतना
अब आखों मे नमी बाकी नहीं

मुकेश इलाहाबादी --------------

Wednesday, 20 March 2013

वो तो दौड़े चले आये थे आहट सुन के


cजो देखा हमको तो ठिठक गए -------
मुकेश इलाहाबादी ------------------------

तूफ़ान पे हौसला भारी है



तूफ़ान पे हौसला भारी है
चराग की लड़ाई जारी है

दुनिया न मेरी न तेरी है
इसपे सबकी हिस्सेदारी है

ज़ुल्म कर लिया तुमने बहुत
सम्हलो, अब हमारी बारी है

बड़े तपाक से मिलता है
उसकी सब से यारी है

मुकेश मेहनत की खाता है
यह उसकी खुद्दारी है

मुकेश इलाहाबादी ------------

चाहत तो थी ले लूं तुझे अपनी बाहों मे


चाहत तो थी ले लूं तुझे अपनी बाहों मे
फैसला मुल्तवी कर दिया तेरी मासूम निगाहें देख के
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------------------

Tuesday, 19 March 2013

मंजिल की कोई मुकम्मल सूरत ले के न चले थे


मंजिल की कोई मुकम्मल सूरत ले के न चले थे ,
ये अलग बात रुका वहीं जा के जहां तेरा घर था
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------

मुहब्बत आग का दरिया है , ख़ाक हो गए होते दोनों


मुहब्बत आग का दरिया है , ख़ाक  हो गए होते दोनों
चलो अच्छा हुआ तनहा ही सही ज़िंदा तो हैं हम दोनों
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------

चलो अच्छा हुआ तुमने किनारा कर लिया खुद ब खुद


चलो अच्छा हुआ तुमने किनारा कर लिया खुद ब खुद
हम भी डूबने से बच गए, और तुमको भी चैन आ गया
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------


Monday, 18 March 2013

किस्सा ऐ जिंदगानी लिखने दो

किस्सा ऐ जिंदगानी लिखने दो
अपनी  राम  कहानी लिखने दो

दुःख दर्द तो सूना दिया तुमको
अब तो प्रेम कहानी लिखने दो

मै  खुद को  कान्हा  लिक्खूंगा
तुमको  राधा  रानी  लिखने दो

अब तो पतझड़ के दिन बीत गए
हमको रितु  मस्तानी लिखने दो

मै  कहलाऊँ  इश्क  का  मारा
तुमको प्रेम दीवानी लिखने दो

मुकेश इलाहाबादी --------------

माना कि दुश्मन हैज़माना मुहब्बत का


माना कि दुश्मन हैज़माना  मुहब्बत का
इतना भी न हीं, सलाम क़ुबूल न करो !!
मुकेश इलाहाबादी --------------------

वो मशरूफ हैं इतने ज़माने की ग़ज़ल सुनने मे


वो मशरूफ हैं इतने ज़माने की ग़ज़ल सुनने मे
सुनाई क्या देगी उन्हें हमारे दिल की धड़कने !!
 मुकेश इलाहाबादी --------------------------

आईना टूट गया छनछनाता हुआ

आईना टूट गया छनछनाता हुआ
फेंका किसी ने पत्थर सनसनाता हुआ

हादसों का शहर हो गया हमारा
कब गिर जाए गोला सनसनाता हुआ ?

नाचती है गुडिया रस्सी पे भूखे पेट
तब लोग फेंकते हैं पैसा खनखनाता हुआ

कली अभी तो खिली भी न थी
भौंरा आ गया बाग़ मे भनभनाता हुआ

अब तो बेख़ौफ़ बेदर्द हो गया हूँ मुकेश
गुज़र जाऊंगा ग़ज़ल गुनगुनाता हुआ

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

Sunday, 17 March 2013

लिख के पूरे सफ़े पे नाम तेरा


लिख के पूरे सफ़े पे नाम तेरा
हासिये पे लिख दिया है नाम अपना

जानता हूँ तेरा जवाब न आयेगा
फिर भी तुझे भेजा है सलाम  अपना

दर्द, बेचैनी और तन्हाईयाँ
गुनगुना लेता हूँ अक्सर कलाम अपना

लिख के अफसाना ऐ दर्दे दिल
ज़माने मे नाम कर लूंगा गुमनाम अपना

अकेला ही कारवां मे बहुत हूँ
है सफ़र का कर लिया  इंतजाम इतना

मुकेश इलाहाबादी -----------------------

जब तलक तुम हमसफ़र थे



जब तलक तुम हमसफ़र थे
राह मे ढेरों हंसीन मन्ज़र थे

अब हर तरफ सिर्फ रेत ही रेत  
तुम थे तो समंदर ही समंदर थे

राह में एक भी हरा पत्ता न मिला
जितने भी मिले सूखे शज़र  थे  

तुम थे तो कारवां अपने साथ था
बाद तेरे साथी सब इधर उधर थे

जाने  कब मंजिल गुज़र गयी!!!
याद में तेरे हम इतने बेखबर थे

मुकेश इलाहाबादी ---------------

सिर्फ तुझे ही पा लेने की ही थी ख्वाहिश

 
सिर्फ तुझे ही पा लेने की ही थी ख्वाहिश
है तुझेसे बिछड़ के मर जाने की ख्वाहिश

जानता हूँ फलक के चाँद पे भी कुछ दाग हैं
पर तू रहे बेदाग हमेशा, यही मेरी ख्वाहिश

परवाना हूँ पल भर मे जल  जाऊंगा, मगर
तू भी शबभर न जले सिर्फ अपनी ख्वाहिश 

लुटा दूं तुझपे अपनी सारी दौलत ऐ जहान
चला जाऊं फिर तेरी बज़्म से यही ख्वाहिश

पत्थर हूँ ज़र्रा ज़र्रा बिखर जाऊं रेत  बनकर
फिर लिपट जाऊं तेरे कदमो से मेरी ख्वाहिश

मुकेश इलाहाबादी ------------------------------

Saturday, 16 March 2013

चेहरे पे आपके हंसी खिल के आयी है कुछ इस तरह


ख्वाब भी अकसर


ख्वाब भी 
अकसर
औकात देख कर आते हैं

गरीब लडकी
की आखों मे
घोड़े पे राजकुमार नहीं आते

रोटियाँ ही रोटियाँ
नज़र आती है
नींद में
रात जब बच्चे
भूखे सो जाते हैं

तब
माँ बाप की आखों मे
ख्वाब नहीं मजबूरियां आती हैं

ख्वाब  भी अक्सर
औकात देख कर आते हैं

मुकेश इलाहाबादी ---

मुट्ठी मे आसमा क़ैद करने की ख्वाहिश


मुट्ठी मे आसमा क़ैद करने की ख्वाहिश
है  तुमको अपना बना लेने की ख्वाहिश
जाने हूँ ये बात, पत्थर पे है फूल खिलाना
फिर भी दिल मे है तुझे पाने की ख्वाहिश
मुकेश इलाहाबादी --------------------------

Friday, 15 March 2013

एहसान मंद है दिल तेरे रहमो - करम का

 एहसान मंद  है दिल तेरे रहमो - करम का
ज़ख्म ज़ख्म गवाह, तेरे ज़ुल्मो  सितम का

छीन कर शुकूं तुमने मेरे सुबो - शाम का
बदला लिया है तुमने ये किस  जनम का

सोख लूंगा आंसू क़तरा कतरा तेरी आँख से
खा के कसम कह रहा तेरे दीदा ऐ नम का

गर आलूदा खूं मिल जाएँ पैरों के निशाँ कंही
जान लो तेरे दर पे ये निशाँ है  मेरे कदम का

मैकदे से निकल के अब जाएँ हम कहाँ ??
पूछता फिर रहा सबसे पता दैरो हरम का

मुकेश लाहाबादी --------------------------------

इश्क मेरा दे दे भले दुशवारियाँ दे दे



इश्क मेरा दे दे भले दुशवारियाँ दे दे
वर्ना दे दे सारे जहां की तन्हाइयां दे

शब् भर की ही सही मुलाक़ात तो दे
फिर चाहे सारे जहाँ की रुस्वाइयां दे

या खुदा आज उदास है मेरा साथिया
दे फिर से उसके गालों की सुर्खियाँ दे

सिर्फ दौलते इश्क से गुज़र कर लूंगा
तू दे मुझे सारे जहाँ की बरबादियाँ दे

रहने  लगा है संजीदा मेरा महबूब
दे  दे फिर से  उसकी  नादानियां दे

मुकेश  इलाहाबादी -----------------

Thursday, 14 March 2013

हवेली की शान देखो


हवेली  की शान देखो 
अन्दर से वीरान देखो

दरो दीवार पे नमी औ
कमरे सूनसान देखो

टूटते  हुए  मेहराबों  मे
सदियों की दास्तान  देखो 

बजती थी शहनाई, अब
अभिशप्त मकान देखो

दफ़न कितने अरमान
चीखों के निशान देखो

मुकेश इलाहाबादी ----


तुझे देखता हूँ तो हैरत सी होती है ,





तुझे देखता हूँ तो हैरत सी होती है ,
इतनी खूबसूरत औरत भी होती है?

तेरा दीदारे हुस्न जब भी जो करे है
उसे ही तुमसे मोहब्बत सी होती है

इश्क मे भले पहले हो ले रूसुवाइयां
बाद मरने के तो शोहरत होती है

संग साथ पा के तेरा खुश रहता हूँ ,,
बिन तेरे ज़िन्दगी बेगैरत सी होती है

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

Wednesday, 13 March 2013

ग़म और दर्द की बातें न करो

ग़म  और दर्द की बातें न करो
बीमार से मर्ज़ की बातें न करो

हो गए हैं शहर में बेईमान सब
ऐसे मे  फ़र्ज़  की  बातें  न करो

मर रहे हैं जो किसान रोज़ रोज़
उनसे और क़र्ज़ की बातें न करो

जुर्म ही जिनका धर्मो ईमान है
उनसे हया शर्म की बातें न करो

जुडी हो जमात जब काहिलों की
तुम ऐसे मे कर्म की बातें न करो

मुकेश इलाहाबादी ----------------

हम ही नासमझ थे वफ़ा चाहते थे


हम ही नासमझ थे वफ़ा चाहते थे
बूत ऐ  संगमरमर में जाँ चाहते थे
मुकेश इलाहाबादी ------------------

यूँ मेरी बेबसी पे तुम खिलखिला के हंसा न करो



यूँ मेरी बेबसी  पे तुम खिलखिला के हंसा न करो
हम तो वैसे ही तेरी मुस्कान पे मर मर गए हैं
मुकेश इलाहाबादी -----------------------------------

तस्वीरे यार हमने भी दिल मे बसा रक्खी है





तस्वीरे यार हमने भी दिल मे बसा रक्खी है
ये अलग बात वो हमसे कुछ कहती नही है!
मुकेश  इलाहाबादी --------------------------

रफ्ता रफ्ता खुल रहे हैं दिले एहसास की किताबों के पन्ने






 रफ्ता रफ्ता खुल रहे हैं दिले एहसास की किताबों के पन्ने
वे पढ़ रहे हैं दिल और हम पढ़ रहे हैं उनकी आखों के पन्ने

वे माजी मे मेरे पढ़ रहे हैं किसी और के नक़्शे कदम
हम उनकी महकती साँसों मे पढ़ रहे हैं वफाओं के पन्ने

नाज़ुकी पे हमने उनकी लिखी थी कुछ नज़्म और ग़ज़लें
मुस्कुरा के हौले हौले पढ़ रहे हैं अपनी अदाओं के पन्ने

होठों पे तबस्सुम , झुकी हुई नज़रें और गरदन पे जुम्बिश
देखते हैं हम उन्हें पलटते हुए मुहब्बत की यादों के पन्ने

मुकेश  इलाहाबादी ------------------------------------------------
रफ्ता रफ्ता खुल रहे हैं दिले एहसास की किताबों के पन्ने
वे पढ़ रहे हैं दिल और हम पढ़ रहे हैं उनकी आखों के पन्ने

वे माजी मे मेरे पढ़ रहे हैं किसी और के नक़्शे कदम
हम उनकी महकती साँसों मे पढ़ रहे हैं वफाओं के पन्ने

नाज़ुकी पे हमने उनकी लिखी थी कुछ नज़्म और ग़ज़लें
मुस्कुरा के हौले हौले पढ़ रहे हैं अपनी अदाओं के पन्ने

होठों पे तबस्सुम , झुकी हुई नज़रें और गरदन पे जुम्बिश
देखते हैं हम उन्हें पलटते हुए मुहब्बत की यादों के पन्ने

मुकेश  इलाहाबादी ------------------------------------------------

Tuesday, 12 March 2013

नामे वफ़ा मिटा के अपनी किताबे मुहब्बत से



नामे वफ़ा मिटा के अपनी किताबे मुहब्बत से
दे गए बड़े शौक से हमे  पढने को ---------------
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------

हीरे सा चमकने की ताब तो हम भी रखते हैं


हीरे सा चमकने की ताब तो हम भी रखते हैं
ज़रा अपनी ज़मीने दिल में छुपा के तो देखो
मुकेश इलाहाबादी ----------------------------

जाम ऐ मुहब्बत तो सब से छुपा बैठे


गुस्ताखी माफ़ !
जाम ऐ मुहब्बत तो सब से छुपा बैठे
शब् भर की खुमारी कंहा ले के जांए ?
मुकेश इलाहाबादी ------------------------

मुहब्बत फ़र्ज़ हो के रह गयी


 मुहब्बत फ़र्ज़ हो के रह गयी
ज़िन्दगी  दर्द  हो  के रह गयी

हिज्र  की  स्याह  लम्बी  रात
तुम बिन सर्द हो के  रह गयी

हमसे की थी जो वफ़ा तुमने
वे अब क़र्ज़ हो के रह गयी

ज़ख्म सारे लाइलाज हो गए
जीस्त  मर्ज़  हो  के  रह गयी

आरजू ऐ मुहब्बत मुकेश की
फक्त    अर्ज़  हो  के  रह  गयी

मुकेश इलाहाबादी ---------------

ख़्वाबों का आशियाना बनाए बैठे हैं


ख़्वाबों  का  आशियाना  बनाए बैठे  हैं
बूते संगमरमर  को  खुदा बनाये बैठे हैं 
रह  रह  के  चमकता  है जुगनू
जुगनू को ही  दिया बनाए बैठे हैं  
मुकेश  इलाहाबादी ------------------------

Sunday, 10 March 2013

तकल्लुफ मे हाल पूछने से बेहतर था


तकल्लुफ मे हाल पूछने से बेहतर था
देख कर हमको जो मुह फेर लेते आप
मुकेश इलाहाबादी ----------------------

शोखियों के फूल भी मुरझा गए जनाब


एक शिकायत ---------------------------
शोखियों के फूल भी  मुरझा गए जनाब
तोडी है हया की डालियाँ जब से आपने
मुकेश इलाहाबादी -----------------------

फैसला तुम्हारे हाथ मे है


फैसला तुम्हारे हाथ मे है
ज़िन्दगी हमारी दांव पे है

तप  रहा है सारा जहान कि
ठंडी हवा तुम्हारी छाँव मे है

शुकून ऐ पल कंही भी नही
चैन बस तुम्हारी ठांव मे है

शहर  मे  तो  मिलती  नही
जो बात तुम्हारे गाँव मे है

दौड़ के लिपट तो जाती तुम
पर हया की ज़ंजीर पाँव मे है

मुकेश इलाहाबादी -------------

Saturday, 9 March 2013

अपनी कुरूपता मसखरी व


अपनी
कुरूपता
मसखरी व
भदेसपन को देखकर
मै हसता रहा देर तक
जब तक कि
आखों की कोरों से
आंसू नहीं निकल आये
व देह मे ऐठन नहीं होने लगी
बहुत देर तक हसने के बाद
मेरे आंसू सूख चुके थे
और ---
एक गहरी चुप्पी छप चुकी थी
चेहरे की झुर्रियों मे
मुकेश इलाहाबादी -----------





सिर्फ चिड़ियों की चहचाहट सुनाई देती है



सिर्फ चिड़ियों की चहचाहट सुनाई देती है
या  हवाओं   की सरसराहट सुनाई देती है

मौत सी ठंडी  खामोशी फ़ैली है  चहुँ ऑर
फिजा  मे  अजब सुगबुहट सुनाई देती है

बह रहा था खामोश दरिया अपनी ही रौ मे
फेंका  है  पत्थर  बुदबुदाहट  सुनाई देती है

हंसता खेलता शहर याक ब यक चुप हो गया 
दहशत इतनी कि सनसनाहट सुनाई देती है

अब  उसे  किसी  की बात तसल्ली नहीं देती
मुकेश की बातों मे छटपटाहट सुनाई देती है

मुकेश इलाहाबादी -------------------------

कोई भी हमारा न हुआ,जो


 कोई भी हमारा न हुआ,जो
हो गए  हम ज़माने भर के
मुकेश इलाहाबादी ---------

क़तरा ऐ आब सा फिसलती रही



 क़तरा  ऐ आब सा फिसलती रही
ठहरती ही नहीं नज़र तेरे शीशा ऐ बदन पर
मुकेश इलाहाबादी -------------------------------

कोई फूलों से ज़ख्म खा के रोता है




कोई फूलों से ज़ख्म खा के रोता है
कोई  हो  के  भी संगसार हंसता है
ये तो अपनी -2फितरत की बात है
इश्क को कौन किस तरह लेता है
मुकेश इलाहाबादी ---------------

रंग और मुल्क देख कर नहीं होती


रंग  और मुल्क देख कर नहीं होती
मुहब्बत की कोई सरहद नही होती

तमाम पहरे लगा रखे हो जमाने ने
मुहब्बत हो जाती है खबर नही होती

होती है लम्बी कयामत तक अक्सर
शबे हिज्र की जल्दी सहर नही होती

ये आग का दरिया है झुलस जाओगे 
मुहब्बत  पानी  की  नहर  नही होती

कुर्बां हो जाएँ जिस्मो जाँ  व  दौलत से
मुकेश मुहब्बत की कोई हद नहीं होती

मुकेश इलाहाबादी --------------------------
 

Friday, 8 March 2013

दी है आवाज़ हमने ज़रा आहिस्ता से


दी है आवाज़ हमने ज़रा आहिस्ता से
कि ज़माना सुन न ले गुफ्तगू हमारी
मुकेश इलाहाबादी --------------------

रात जब तुम्हारी आखों से


 रात जब
तुम्हारी आखों से
खुशी के दो बूँद
मेरी हथेली पे टपके थे
तब लगा था
जैसे --
हथेली पे खिल आये हों
गुलाब के दो फूल
और मेरा वजूद
महमहा गया था
किसी गुलशन सा

सुबह जब
अलसाई आखों से
तुमने अपनी लटों को
बिखेर दिया था
मेरे सीने और काँधे पे
तब लगा था
बादल बरस गया हो
पर्वत के सीने पे
और मुस्कुरा उठी हो कायनात
घर के कोने कोने मे

मुकेश इलाहाबादी ---------


मुहब्बत खुदा का नूर होती है

मुहब्बत खुदा  का  नूर होती  है
जब  भी होती है भरपूर होती है

न रुसुवाई से डरती है न मौत से
फिर भी मुहब्बत मजबूर होती है

भले ही पत्थर दिल हो ले कोई भी
इक मर्तबा मुहब्बत ज़रूर होती है

होता  है  जिनके हुस्न मे बांकपन
अदाएं उन की बड़ी मगरूर होती हैं

 


पास थे वे तो हमने कुछ न समझा
तड़पता हूँ मुहब्बत जब  दूर होती है

मुकेश इलाहाबादी ----------------------

Thursday, 7 March 2013

गर परवाने से मुहब्बत नहीं होती

गर परवाने से मुहब्बत नहीं होती
शम्मा यूँ रात भर न जली होती ?
भँवरे तो बेवजह  बदनाम होते हैं
कलियाँ  ही  पहले  मुस्कुराती हैं
मुकेश इलाहाबादी ---------------

Wednesday, 6 March 2013

शतरंज की बिसात के प्यादे रहे



शतरंज की बिसात के प्यादे रहे
हर  बड़े  मोहरे  से मात खाते रहे

बाद्शाहियत जिनकी फितरत थी
क़दम भर चल के बहक जाते रहे

वज़ीर, फील, और  रुख  मर  गया
फिर  भी  प्यादे से बाजी बढाते रहे

हमारे ही मोहरे बगावाती रहे तभी
कई  बार  शै  का  शिकार  होते  रहे

हमने  तो  हर  बाजी  खेल मे  लिया
लोग इसपे  सियासी  रंग  चढाते रहे  

मुकेश इलाहाबादी ---------------------

पत्थरों की मुस्कुराती मूरत देख ले





 पत्थरों की मुस्कुराती मूरत देख  ले
 जिसने नही  देखा तेरी सूरत देख ले
 क्यूँ ग़मज़दा चेहरा लिए फिरते हो ?
 इश्क करके दुनिया खूबसूरत देख लो
 मुकेश इलाहाबादी --------------------

तेरे कदमो से उड़ के जो तेरे दामन से लिपटी है


 तेरे कदमो से उड़ के जो तेरे दामन से लिपटी है
 वो मेरी हस्ती है, ख़ाक बन के राह पे बिखरी है
 मुकेश इलाहाबादी ---------------------------------

लोग हमें इश्क का बादशाह कहा करते थे,










लोग हमें इश्क का बादशाह कहा करते थे,
इक तेरे इश्क ने हमें कंही का न रक्खा !!
मुकेश इलाहाबादी -----------------------

गाँव गली को घूम के देखा



गाँव गली को घूम के देखा
ताल तलइया डूब के देखा

ग़ज़ल  रुबाई  हो  कि  गीत
ता  था  थैया  झूम  के  देखा

गुस्सा  तेरा, प्यार भी देखा
फूल  सा चेहरा चूम के देखा

अजब  नशीली  खुशबू जानी
तेरी काली जुल्फें चूम के देखा

हो  परियों की  शहजादी  तुम
चाँद  सितारों  से पूछ  के देखा

मुकेश इलाहाबादी -----------

अभी रात का नशा तारी है


अभी रात का नशा तारी है
प्यार  का  खुमार  बाकी है

दिल-ऐ -दौलत तुझे दे डाला 
अब ये ज़िन्दगी  तुम्हारी है

हमें जो कहना था कह दिया
बोलने  की  तुम्हारी  बारी है

जँहा  सारा  दुश्मन हो  गया
अब सिर्फ तुमसे  ही  यारी है

हो  गयी परछाइयां  लम्बी
सूरज  डूबने  की  तैयारी है

शुकूने  पल  मिला  ही नही
जंग  ऐ  ज़िन्दगी  जारी  है

मुकेश इलाहाबादी ---------