काँच की तरह कुछ चटका हुआ तो है
दिल के अंदर कुछ तो टूटा हुआ तो है
गिनता हूँ तो सारे असबाब हैं फिर भी
तुम्हारे पास मेरा कुछ छूटा हुआ तो है
समेट लिया है हमने, अपने आप को
वज़ूद में अपने कुछ बिखरा हुआ तो है
चाँद भी वही सूरज भी वही तारे वही हैं
बाद दिसम्बर के कुछ बदला हुआ तो है
हँसता है मुस्कुराता है, बतियाता भी है
लगता है मुकेश खुद से रूठा हुआ तो है
मुकेश इलाहाबादी ----------------
दिल के अंदर कुछ तो टूटा हुआ तो है
गिनता हूँ तो सारे असबाब हैं फिर भी
तुम्हारे पास मेरा कुछ छूटा हुआ तो है
समेट लिया है हमने, अपने आप को
वज़ूद में अपने कुछ बिखरा हुआ तो है
चाँद भी वही सूरज भी वही तारे वही हैं
बाद दिसम्बर के कुछ बदला हुआ तो है
हँसता है मुस्कुराता है, बतियाता भी है
लगता है मुकेश खुद से रूठा हुआ तो है
मुकेश इलाहाबादी ----------------